डिक्री क्या है ? डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है ? डिक्री के प्रकार ? what is decree , essential element of decree and types of decree

0
17


www.lawyerguruji.com

नमस्कार मित्रों ,

 आज इस लेख में हम जानेंगे कि डिक्री क्या है ? सिविल मामलों में सिविल अधिकारिता वाले सिविल न्यायालय द्वारा अपने क्षेत्राधिकार के भीतर विवादित विषय वस्तु के सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों का निश्चायक रूप से अवधारण करना। 

डिक्री को लेकर उठ रहे होंगे जैसे कि :-

  1. डिक्री क्या है ?
  2. डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है ?
  3. डिक्री के प्रकार ?

इन सभी को विस्तार से समझे। 

डिक्री क्या है ? डिक्री के आवश्यक तत्व क्या है ? डिक्री के प्रकार ? what is decree , essential element of decree and types of decree

1. डिक्री क्या है ?

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 2 उपधारा 2 में डिक्री को परिभाषित किया गया है। डिक्री से ऐसे न्यायनिर्णय की प्रारूपिक अभिव्यक्ति अभिप्रेत है जो , जहां तक कि वह उसे अभिव्यक्त करने वाले न्यायालय से सम्बंधित है, वाद में के सभी या किन्ही विवादग्रस्त विषयों के  सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों का निश्चायक अवधारण करता है  और डिक्री प्रारंभिक और अंतिम हो सकेगी। 

यह समझा जायेगा की डिक्री के अंतर्गत वाद पत्र का नामंजूर किया जाना और धारा 144 के भीतर किसी प्रश्न का अवधारण करना आता है। 

किन्तु डिक्री के अंतर्गत :-

  1.  न तो ऐसा कोई न्यायनिर्णय आएगा जिसकी अपील , आदेश की अपील की भांति होती है , और 
  2. न व्यतिक्रम के लिए ख़ारिज करने का कोई आदेश आएगा। 

2. डिक्री के आवश्यक तत्त्व क्या है ? 

डिक्री के आवश्यक तत्व क्या होंगे ये तो न्यायालय अपने एक वाद में बताया है। ए० सतनाम बनाम सुरेंदर कौर (2009 2 एस सी सी 562 )   डिक्री केअवश्यक तत्वों को बताया गया है। 

  1. डिक्री में न्यायनिर्णय होना चाहिए। 
  2. ऐसा न्यायनिर्णय वाद में किया जाना चाहिए। 
  3. न्यायनिर्णय द्वारा पक्षकारों  अधिकारों का विनिश्चय किया जाना चाहिए। 
  4. ऐसा विनिश्चय निष्कर्षात्मक प्रकृति का होना चाहिए। 
  5. ऐसे विनिश्चय की औपचारिक अभिव्यक्ति होनी चाहिए। 

3. डिक्री के प्रकार ? 

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत डिक्री के निम्न प्रकार है :-

  1. प्रारंभिक डिक्री।  
  2. अंतिम डिक्री। 

1. प्रारंभिक डिक्री – प्रारंभिक डिक्री किसी सिविल वाद में तब पारित की जाती है जब कोई न्यायनिर्णय वाद में विवादास्पद विषयों में से या किन्ही के सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों का विनिश्चय करता है , किन्तु वाद का पूर्णरूपेण निपटारा नहीं ,  वहां ऐसी डिक्री को प्रारंभिक डिक्री कहा जयएगा। 

निम्नलिखित मामलों में प्रारंभिक डिक्री पारित की जाती है :-

  1. कब्ज़ा , किराया और मध्यवर्ती लाभ के वाद में। 
  2. प्रशासनिक वाद में ,
  3. अग्रक्रयाधिकार (pre – emption ) के वाद में। 
  4. भागीदारी समाप्ति के लिए वाद ,
  5. मालिक और अभिकर्ता के हिसाब के लिए वाद ,
  6. विभाजन और पृथक कब्जे के लिए वाद ,
  7. पुरोबंध वाद ( foreclosure ) के लिए वाद, 
  8. बंधक संपत्ति के विक्रय के लिये वाद,  
  9. बंधक मोचन के लिए वाद। 

प्रारंभिक डिक्री केवल उन्ही मामलों में पारित की जा सेकगी जिसके बारें में संहिता में स्पष्ट रूप से व्यवस्था की गयी है। 

2. अंतिम डिक्री। 

अंतिम डिक्री किसी वाद में जहाँ न्यायनिर्णय मामले को पूर्णरूपेण से निपटा दिया जाता है , वहां डिक्री अंतिम डिक्री कही जाएगी।  कोई डिक्री अंतिम डिक्री तब हो जाती है , यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा पारित कर दी गयी है और उसके विरुद्ध कोई अपील संस्थित नहीं की गयी है।  

 







Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here