क्या सरकार बदलापुर मामले में आरोपित पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करेगी: अदालत

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बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या वह बदलापुर स्कूल यौन उत्पीड़न के आरोपी के साथ मुठभेड़ को लेकर आई मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में दोषी ठहराए गए पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का विचार कर रही है।

अदालत ने यह सवाल तब पूछा जब राज्य सरकार ने दोहराया कि उसने पहले ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है और कथित पुलिस गोलीबारी की जांच राज्य सीआईडी ​​द्वारा की जा रही है। मामले के आरोपी को पिछले साल 23 सितंबर को तलोजा जेल से ठाणे जिले के कल्याण ले जाते समय पुलिस मुठभेड़ में कथित तौर पर मार गिराया गया था।

एस्कॉर्टिंग पुलिस टीम ने दावा किया कि उन्होंने आरोपी पर आत्मरक्षा में गोली चलाई, क्योंकि उसने उनमें से एक की बंदूक छीन ली और गोली चला दी। चूंकि यह हिरासत में मौत का मामला था, इसलिए कानून के अनुसार, एक मजिस्ट्रेट ने जांच की और अपनी रिपोर्ट उच्च न्यायालय को सौंप दी।

मजिस्ट्रेट ने कहा कि मृतक आरोपी के माता-पिता द्वारा लगाए गए आरोपों में तथ्य है कि यह एक फर्जी मुठभेड़ थी, और इससे पुलिसकर्मियों के आत्मरक्षा के दावे पर संदेह पैदा होता है। जांच रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी की मौत के लिए पांच पुलिसकर्मी जिम्मेदार थे।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि वह केवल यह जानना चाहती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने के बाद राज्य सरकार क्या करने का प्रस्ताव रखती है।

अदालत ने कहा, ‘‘एक बार रिपोर्ट आ जाने के बाद, हमारा सवाल यह है कि क्या राज्य को प्राथमिकी दर्ज करना चाहिए या नहीं। आज सवाल यह है कि क्या राज्य प्राथमिकी दर्ज करने का प्रस्ताव रखता है या नहीं? हां या ना में जवाब दें।’’

सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि राज्य सरकार पहले से ही जांच आयोग के अलावा एक स्वतंत्र जांच कर रही है और इसलिए उनका मानना ​​है कि वह कानून के अनुसार काम कर रही है।

देसाई ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा की गई टिप्पणियां प्राथमिकी दर्ज करने का आधार नहीं हो सकतीं।

उन्होंने कहा, ‘‘राज्य अपनी स्वतंत्र जांच कर रहा है और उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि आरोपपत्र दाखिल करने की जरूरत है या नहीं या संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं, जिसके आधार पर मामले को बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की जानी चाहिए।’’

देसाई ने कहा कि इस समय, जब जांच पहले से ही चल रही है, अदालत को मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने के बारे में पूछने का औचित्य नहीं है। अदालत इस मामले पर 10 मार्च को अगली सुनवाई करेगी।

पीठ ने पिछले सप्ताह वरिष्ठ अधिवक्ता मंजुला राव को न्यायमित्र (अदालत मित्र) नियुक्त किया था, ताकि वह मामले में सहायता कर सकें, क्योंकि मृतक आरोपी के माता-पिता ने कहा था कि वे अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। मृतक आरोपी को अगस्त 2024 में बदलापुर के एक स्कूल के शौचालय में दो नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वह स्कूल में अटेंडेंट था।



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